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मुस्लिम विधि में हिबा का क्या मतलब है, क्या हिबा रद्द किया जा सकता है ?

July 1, 2021 by Mohd Mohsin Leave a Comment

Table of Contents

  • परिचय
  • हिबा की परिभाषा
  • हिबा की विशेषताएँ
  • हिबा के आवश्यक तत्व
    • हिबा के पक्षकार
      • दान-दाता (Donor)
      • दानग्रहीता (Donee)
    • हिबा की विषय-वस्तु
    • हिबा की विषय-वस्तु की सीमा और तत्व
  • हिबा की शर्तें
    • दान-दाता द्वारा घोषणा
    • हिबा की स्वीकृति
    • कब्ज़े का परिदान
  • क्या मौखिक हिबा किया जा सकता है ?
  • वह कौन से हिबा होते हैं जिनमें कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं होता ?
  • शून्य हिबा
    • अजन्मे व्यक्ति को हिबा
    • भावी हिबा
    • किसी घटना के घटित होने पर हिबा
    • शर्त के साथ हिबा
  • हिबा का खंडन (रद्द करना)
    • कब्ज़े के परिदान से पहले
    • कब्ज़े के परिदान के बाद
  • हिबा के प्रकार
    • हिबा-बिल-एवज
    • हिबा-ब-शर्तुल-एवज

परिचय

हिबा का शाब्दिक अर्थ है – “ऐसी वस्तु का दान जिससे दान प्राप्त करने वाला लाभ उठा सके I मुस्लिम विधि के अनुसार एक मुसलमान अपने जीवन में अपनी संपत्ति को क़ानूनी ढंग से दान द्वारा अंतरित कर सकता है या वह अपनी संपत्ति को वसीयत द्वारा, जो उसकी मौत के के बाद प्रभावी होगी, अंतरित कर सकता है I अपने जीवनकाल में वह अपनी संपत्ति का किसी भी सीमा तक अंतरण कर सकता है जबकि वसीयत द्वारा वह पूरी संपत्ति का सिर्फ ⅓ भाग ही दान कर सकता है I

इस प्रकार कोई मुस्लिम 2 तरह से दान कर सकता है –

  • जीवित दशा में दान
  • वसीयत द्वारा दान

हिबा की परिभाषा

“एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को तुरंत और बिना किसी बदले के और बिना किसी शर्त के किया गया संपत्ति का अंतरण, जिसे दूसरा स्वीकार करता है या उसकी तरफ से स्वीकार किया जाता है I”

हिबा की विशेषताएँ

  • हिबा एक ऐसा कार्य है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी संपत्ति के स्वामित्व को प्रदान करता है I
  • यह संपत्ति का बिना शर्त अंतरण है I
  • हिबा में संपत्ति अंतरणकर्ता द्वारा अंतरिती को तुरंत अंतरित होती है I हिबा तुरंत प्रभावी हो जाता है I
  • हिबा की संपत्ति को हिबा के समय अस्तित्व में होना ज़रूरी है I
  • हिबा बिना किसी प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण है I

हिबा के आवश्यक तत्व

हिबा के पक्षकार

हिबा के लिए 2 पक्षकार होना ज़रूरी हैं –

दान-दाता (Donor)

दान-दाता को व्यस्क मतलब 18 वर्ष का होना ज़रूरी है I 15 वर्ष की आयु केवल विवाह, मेहर और तलाक के लिए ही मानी जाती है I अन्य मामलों में भारतीय वयस्कता अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति 18 वर्ष की उम्र पूरी होने पर ही व्यस्क माना जाता है I दान-दाता को स्वस्थ्य मस्तिष्क का होना चाहिए और उसकी सहमती स्वतंत्र होनी चाहिए और वह अंतरण की विषय-वस्तु का स्वामी होना चाहिए I

कुछ विशेष उदाहरण –

  • विवाहित स्त्री द्वारा दिया गया दान मान्य होता है I
  • पर्दानशीन द्वारा दिया गया दान मान्य होता है अगर वह संव्यवहार की प्रकृति समझती थी और उस पर कोई अनुचित दबाव नहीं था I लेकिन यह साबित करने का भार दानग्रहीता पर होता है I
  • दिवालिया व्यक्ति भी हिबा कर सकता है बशर्ते कि उसका आशय सदभावना से हिबा करने का हो I
दानग्रहीता (Donee)

संपत्ति का स्वामी होने योग्य कोई भी व्यक्ति जिसमें विधिक व्यक्ति भी शामिल है, दानग्राहीता हो सकता है I लिंग, आयु और धर्म इसमें बाधक नहीं है I हिबा किन-किन व्यक्तियों को किया जा सकता है और किन को नहीं – जैसे

  • अजन्मे व्यक्ति को किया गया हिबा अमान्य होता है लेकिन दान की तारीख से 6 महीने के अन्दर जन्म लेने वाला व्यक्ति अस्तित्व में समझा जाता है और वह सक्षम दानग्राहीता होता है I
  • मस्जिद और दूसरी संस्थाएं विधिक व्यक्ति मानी जाने के कारण सक्षम दानग्राहीता होती हैं I
  • किसी गैर मुस्लिम को किया गया हिबा वैध होता है I
  • दान दाता से वैश्वासिक सम्बन्ध रखने वाले दानग्राहीता को किया गया हिबा तभी मान्य होता है जब यह साबित कर दिया जाए कि कि वह अनुचित प्रभाव का परिणाम नहीं है I
  • अवयस्क और अस्वस्थ्यचित्त व्यक्ति को किया गया हिबा वैध है लेकिन ऐसा हिबा दानग्राहीता के संरक्षक द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए I जैसे –
  1. पिता  2- पिता का निष्पादक  3- पिता का पिता   4- पिता के पिता का निष्पादक

 

हिबा की विषय-वस्तु

सामान्य नियम यह है कि उस वस्तु का हिबा हो सकता है –

  • जिस पर स्वामित्व या संपत्ति के अधिकार का प्रयोग किया जा सके,
  • जिस पर कब्ज़ा प्राप्त किया जा सके,
  • जो माल के अर्थ में आती हो,
  • जिसका अस्तित्व वस्तु के रूप या निष्पादन अधिकार के रूप में हो I

मुस्लिम विधि पैतृक या स्वंय अर्जित की गई संपत्ति, चल या अचल संपत्ति में कोई अंतर नहीं करती है I मुस्लिम विधि में संपत्ति को माल कहा जाता है I ऐसी कोई भी वस्तु जिसका अधिभोग किया जा सकता है या जिसको कब्ज़े में रखा जा सकता है, हिबा की विषय-वस्तु बन सकती है I हिबा करने के लिए संपत्ति में निम्नलिखित अर्हताएं होनी चाहिए –

  • संपत्ति का अस्तित्व में होना ज़रूरी है I भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी वस्तु का हिबा शून्य होता है I
  • दान-दाता को उस पर काबिज़ होना ज़रूरी है I वरना हिबा शून्य होगा I

हिबा की विषय-वस्तु की सीमा और तत्व

मुस्लिम विधि में संपत्ति के दो तत्वों के बीच अंतर किया गया है I

  • काय (Corpus)
  • फलोपभोग (Usufruct)

काय का मतलब संपत्ति पर स्वामित्व के ऐसे अधिकार से है, जो उत्तराधिकार योग्य हो और उस पर समय की कोई सीमा न हो I

फलोपभोग का मतलब संपत्ति के केवल उपभोग या उपयोग का अधिकार है और यह अधिकार उत्तराधिकार योग्य नहीं होता है I समय की दृष्टी में यह अधिकार सीमित होता है I

संपत्ति में ‘काय’ का दान ‘हिबा’ कहलाता है और ‘फलोपभोग’ का दान ‘अरीया’ कहलाता है I

मुस्लिम विधि में हिबा के संव्यवहार में न्यायालय का सबसे पहला कर्त्तव्य यह देखना होगा कि वह काय का हिबा है या फलोपभोग का I अगर काय का हिबा है तो कोई ऐसी शर्त जो विषय-वस्तु को पूर्ण स्वामित्व से नीचे ले जाती हो, अस्वीकार कर दी जाएगी I एक वाद में कहा गया कि हिबा काय का ही होना चाहिए ऐसा हिबा जो दानग्राहीता को दान-दाता की मौत के बाद अधिकार प्रदान करे, अमान्य है I

विषय-वस्तु के प्रकार

  • मूर्त संपत्ति – ऐसी वस्तु जो देखी और छुई जा सके I
  • अमूर्त संपत्ति – जिसका कोई भौतिक अस्तित्व न हो, जैसे – किसी ऋण का भुगतान प्राप्त करने का अधिकार या बंधक-मोचन का अधिकार I

विभिन्न विषय-वस्तुएं

  • ऋण का भुगतान प्राप्त करने का अधिकार I
  • धन (माल)
  • बंधक-मोचन का अधिकार
  • मेहर
  • सरकारी प्रतिभूतियां
  • अधिकार जो पूर्ण स्वामित्व का न हो, जैसे – लगान वसूली का अधिकार I

हिबा की शर्तें

हिबा के लिए 3 शर्तों का पूरा करना ज़रूरी है –

दान-दाता द्वारा घोषणा

दान-दाता का हिबा करने का स्पष्ट और असंदिग्ध आशय होना ज़रूरी है I जब हिबा करने वाले की तरफ से आशय असंदिग्ध हो तो हिबा शून्य होगा I जैसे – ऋणदाताओं को प्रवंचित करने के आशय से किया गया हिबा ऋणदाताओं के विकल्प पर शून्यकरणीय होता है I लेकिन उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार से वंचित करने लिए किया गया हिबा अवैध नहीं होता है I

हिबा की स्वीकृति

दानग्राहीता द्वारा या उसकी ओर से हिबा की स्वीकृति होना ज़रूरी है I लेकिन जहाँ किसी पिता या अन्य संरक्षक ने अपने अवयस्क पुत्र या किसी प्रतिपाल्य के पक्ष में हिबा किया गया है तो वहां स्वीकृति ज़रूरी नहीं है I अगर स्वीकृति शब्दों में न हो लेकिन पक्षकारों के आचरण से स्पष्ट हो तो हिबा मान्य होगा I जैसे – कोई यह कहे कि मैं यह तुम्हें दे रहा हूँ और दूसरा व्यक्ति बिना कोई शब्द कहे उस वस्तु को ले लेता है या उस पर कब्ज़ा पा लेता है तो यह मान्य स्वीकृति है I

कब्ज़े का परिदान

हिबा का मान्य होने के लिए तीसरी आवश्यक शर्त कब्ज़े का परिदान है I हिबा पर अन्य शर्तों का कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक कि इस शर्त को पूरा न कर दिया जाए I कब्ज़े के परिदान की असली परीक्षा यह है कि संपत्ति से लाभ कौन उठाता है अगर दान-दाता लाभ उठाता है तो यह कब्ज़े का अंतरण नहीं हुआ और हिबा अपूर्ण है और अगर दानग्राहीता लाभ उठाता है तो यह कब्ज़े का परिदान हो गया और हिबा पूर्ण है I

क्या मौखिक हिबा किया जा सकता है ?

मौखिक हिबा उतना ही प्रभावी होता है जितना कि लिखित बशर्ते कि वह मुस्लिम विधि के अंतर्गत मान्य हिबा की शर्तों को पूरा करता हो I मुस्लिम विधि में अचल संपत्तियों का हिबा बिना लिखित और बिना रजिस्ट्रीकृत सिर्फ मौखिक ढंग से किया जा सकता है I यह ध्यान रखना चाहिए कि मौखिक हिबा को केवल संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के द्वारा ही मान्यता प्रदान की गयी है I कुछ स्थानीय अधिनियम हैं जिनके अंतर्गत हिबा की वैधता के लिए उसका पंजीयन आवश्यक है I

क़म्रुन्निसा बीबी बनाम हुसैनी बीबी के मामले में अचल संपत्ति का मौखिक हिबा, जिसके बाद कब्ज़ा अंतरित कर दिया गया था, मान्य समझा गया I

महबूब साहब बनाम सैयद इस्माइल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम विधि द्वारा किये गये हिबा का लिखित और पंजीकृत होना ज़रूरी हैं है I वैध हिबा के लिए घोषणा उसकी स्वीकृति और कब्ज़ा दिया जाना आवश्यक है I अगर यह 3 तत्व साबित हो जाते हैं तो हिबा वैध होगा I

वह कौन से हिबा होते हैं जिनमें कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं होता ?

1- पिता, माता या किसी संरक्षक द्वारा पागल या अवयस्क (पुत्र, पुत्री) को हिबा – हिबा के इस मामले में, जहाँ दान दाता और दान ग्राहीता उसी घर में रहते हों या अलग-अलग, जो हिबा किया जाना है, कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं है I सिर्फ हिबा करने का आशय सदभावना पूर्ण होना चाहिए I यहाँ संरक्षक का मतलब अवयस्क की संपत्ति का संरक्षक है यानी पिता, पिता का निष्पादक, पिता का पिता, उसका निष्पादक I

 

(a)- अपने अवयस्क लड़के को पिता या उसके निष्पादक द्वारा हिबा – इस अवस्था में कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं है क्यूंकि खुद पिता ही अपने लड़के के संरक्षक की हैसियत में कब्ज़ा प्राप्त करेगा I

(b)- पिता के पिता द्वारा अपने अवयस्क पौत्र को हिबा बशर्ते कि उसका पिता मर गया हो – इस अवस्था में भी कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं होता क्यूंकि पिता के न रहने पर अवयस्क की तरफ से उसके संरक्षक की हैसियत से  पिता का पिता ही कब्ज़ा प्राप्त करेगा I लेकिन अगर पिता जीवित है और संरक्षक के रूप में अपने अधिकारों और शक्तियों से वंचित नहीं किया गया है तो कब्ज़ा दिया जाना आवश्यक है वरना हिबा पूर्ण नहीं होगा I

 

2- जहाँ दानदाता और दानग्राहीता दोनों ही हिबा की विषय-वस्तु में रहते हों – हिबा के ऐसे मामलों में दान दाता को घर से निकल जाने की ज़रुरत नहीं होती बल्कि सिर्फ कब्ज़ा देने और हिबा की विषय-वस्तु से अपना अधिकार त्याग देने का आशय ही पर्याप्त होता है I

 

3- पति द्वारा अपनी पत्नी को या पत्नी द्वारा अपने पति को हिबा – हिबा के ऐसे मामलों में भी कब्ज़ा दिया जाना ज़रूरी नहीं है बशर्ते कि परिस्थितियों से यह अनुमानित किया जा सके कि हिबा का आशय वास्तविक और सदभावना पूर्ण था I यह तथ्य कि पति हिबा के बाद भी मकान में रहता चला आया और किराया वसूल करता रहा, हिबा को अमान्य नहीं बना देगा I

 

4- अमूर्त अधिकार – हिबा के ऐसे मामलों में जिनमे हिबा की विषय-वस्तु की प्रकृति के कारण कब्ज़ा नहीं दिया जा सकता है और ऐसे मामलों में जिनमे कब्ज़ा दिया जा सकता है, अंतर करना उचित है I जैसे – जहाँ भू खंड पट्टे पर उठे हों वहां वास्तविक कब्ज़ा नहीं दिया जा सकता I इसलिए भू खण्डों का ऐसा हिबा मान्य होता है I

 

5- जब उपहनिहिती या न्यासधारी या बंधक के रूप में संपत्ति दान ग्राहीता के कब्ज़े में हो – हिबा के ऐसे मामलों में जहाँ उपरोक्त कारण से संपत्ति दान ग्राहीता के कब्ज़े में हो तो कब्ज़ा दिए बिना ही सिर्फ घोषणा और स्वीकृति द्वारा हिबा पूर्ण किया जा सकता है I

 

6- कब्ज़े का आंशिक परिदान – जहाँ यह साक्ष्य हो कि हिबा की संपत्ति से कुछ हिस्से का कब्ज़ा दे दिया गया है तो विषय-वस्तु के शेष हिस्से का परिदान मान्य किया जा सकता है I

 

शून्य हिबा

अजन्मे व्यक्ति को हिबा

ऐसे व्यक्ति को हिबा, जो हिबा के वक़्त तक अस्तित्व में न हो, शून्य होता है I

अपवाद –

  • ऐसा बच्चा जिसका जन्म हिबा की तारीख से 6 महीने के अंदर हो जाये, वह सक्षम दान ग्राहीता होता है I
  • अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में हिबा शून्य होता है लेकिन अस्तित्व में न होने वाले व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित मान्य होता है I

भावी हिबा

  • भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी वस्तु का हिबा नहीं किया जा सकता है जैसे – अगले साल की फसल का हिबा
  • ऐसा हिबा जो दान दाता की मौत के बाद प्रभाव में आने वाला हो और जिसके बारे में यह साफ़ तौर से घोषित हो कि उसके जीवन काल में ऐसा हिबा खंडनीय है, शून्य होगा I

किसी घटना के घटित होने पर हिबा

किसी भविष्य की अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने पर प्रभाव में आने वाला हिबा शून्य होता है क्यूंकि यह एक संयोग मात्र ही है कि वह घटना घटे या न घटे I

शर्त के साथ हिबा

जब किसी ऐसी शर्त के साथ हिबा किया जाए जो उसे पूर्णता से नीचे ले जाए, तो हिबा मान्य होता है लेकिन शर्त शून्य होती है और हिबा इस प्रकार प्रभाव में आएगा जैसे उसके साथ कोई शर्त न लगी हो I

शून्य शर्तें –

  • दान ग्राहीता के अंतरण की शक्तियों को निर्बन्धित करने वाली शर्तों का हिबा पर कोई असर नहीं होगा I जैसे – A किसी संपत्ति का हिबा B को इस शर्त के साथ करता है कि B उसका अंतरण नहीं करेगा या किसी विशेष व्यक्ति को ही अंतरण कर सकेगा I हिबा की यह शर्त शून्य है और हिबा पर इसका कोई असर नहीं होगा I हिबा वैध है I
  • उपभोग की रीति पर निर्बन्धन लगाने वाली शर्तें शून्य होती हैं और हिबा पर उसका कोई असर नहीं होगा I जैसे – A गाय का हिबा B को इस शर्त के साथ करता है कि वह दूध उसका दूध नहीं बेचेगा I शर्त शून्य है और हिबा मान्य है I

मान्य शर्तें –

  • किसी हिबा में, जिसमें दान दाता काय या उसके किसी भाग पर स्वामित्व का हिबा न करके सिर्फ उससे होने वाली आमदनी या उस वस्तु के उपभोग करने का हिबा करता है तो हिबा और शर्तें दोनों ही मान्य होते हैं I जैसे – A किसी संपत्ति का हिबा अपने पुत्र B को इस शर्त के साथ करता है कि B उसकी आमदनी में से 40 रूपए सालाना A को उसके जीवन काल में देता रहेगा और शेष आमदनी को अपने और C के बीच बराबर बांट लिया करेगा I यहाँ हिबा और शर्तें दोनों मान्य हैं I

हिबा का खंडन (रद्द करना)

मुस्लिम विधि में सभी स्वेच्छापूर्ण संव्यवहार खंडनीय होते हैं I हनफी विधि में हिबा हमेशा खंडनीय होता है हालाँकि पैगम्बर मोहम्मद साहब की परंपरा के कारण इसे अच्छा नहीं माना जाता है I शिया विधि में घोषणा मात्र से हिबा रद्द किया जा सकता है लेकिन हर हिबा रद्द नहीं किया जा सकता है I हनफी विधि में हिबा को न्यायालय द्वारा रद्द किया जा सकता है I

कब्ज़े के परिदान से पहले

इस मामले में विधि बहुत ही स्पष्ट है I कब्ज़े देने से पहले हिबा पूरा नहीं होता है इसलिए दाता को उसको रद्द करने का पूरा अधिकार होता है I

कब्ज़े के परिदान के बाद

कब्ज़े के परिदान के बाद भी दाता को हिबा को रद्द करने का पूरा अधिकार होता है लेकिन फर्क सिर्फ इतना होता है कि उसे दान ग्राहीता की सहमती या न्यायालय से डिक्री प्राप्त करनी होगी I निम्नलिखित अवस्थाओं को छोड़कर न्यायालय डिक्री प्रदान कर देगा I

  • जब दाता की मृत्यु हो गई हो I
  • जब दान ग्राहीता की मृत्यु हो गई हो I
  • जब दान ग्राहीता का दान दाता से रिश्ता निषिद्ध आसत्तियों के भीतर हो I
  • जब दाता और दान ग्रहीता का वैवाहिक संबंध हो I

हिबा के प्रकार

मुस्लिम विधि में अन्य प्रकार के दान भी होते हैं जो तथ्यत: हिबा की तरह ही होते है लेकिन कुछ बातों में हिबा से भिन्न होते हैं I अगर इस प्रकार के हिबा परिभाषा के आवश्यक तत्वों की पूर्ति न करे तो कोई आश्चर्य नहीं है I

हिबा-बिल-एवज

हिबा का अर्थ है ‘दान’ और एवज का अर्थ है ‘बदले में’ I इस तरह इसका मतलब है कि प्रतिकर के बदले में दान I जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का अंतरण किसी अन्य संपत्ति या वस्तु के एवज में करता है तो ऐसा संव्यवहार हिबा-बिल-एवज कहलाता है I हिबा-बिल-एवज, हिबा की मूल परिभाषा से अलग होता है I फिर भी इसे हिबा इसलिए मानते हैं कि शुरू में वह प्रतिकरयुक्त हिबा नहीं होता है I दान और प्रतिदान दो अलग-अलग संव्यवहार होते हैं I जिनको मिलाकर हिबा-बिल-एवज कहा जाता है I भारत में यह एक विक्रय या विनिमय है और इसमें विक्रय की सब प्रसंगतियाँ पाई जाती हैं I इसमें कब्ज़े का परिदान आवश्यक नहीं होता है I यह शुरू से ही अखंडनीय होता है I

आवश्यक शर्तें –  इसके 2 शर्तें हैं –

  • दान ग्राहीता की तरफ से प्रतिकर का वास्तविक भुगतान I

एक मामले में प्रिवी काउंसिल के मान्य न्यायाधीशों ने कहा कि निसंदेह प्रतिफल की इच्छा का कोई सवाल नहीं है I हिबा की वस्तु की तुलना में बिलकुल कम प्रतिकर भी पूरी तरह मान्य हो सकता है I कुछ मामलों में यहाँ तक भी कहा गया कि अंगूठी, कुरान, नमाज़ की चटाई या तस्बीह हिबा-बिल-एवज के संव्यवहार में अच्छा प्रतिफल हो सकता है I प्रतिफल जो भी, उसका वास्तविक और सदभावना पूर्ण भुगतान ज़रूरी है I केवल भुगतान करने का वादा पर्याप्त नहीं है I

  • दाता की तरफ से अपनी संपत्ति पर कब्ज़ा छोड़ने या उसे दान ग्राहीता को देने का सदभावना पूर्ण आशय I

हिबा-ब-शर्तुल-एवज

शर्त का अर्थ है ‘अनुबंध’ I हिबा-ब-शर्तुल-एवज का अर्थ हुआ -’अनुबंध के साथ किसी प्रतिफल के लिए किया गया हिबा I” जहाँ कोई हिबा इस शर्त के साथ किया जाता है कि दान ग्राहीता इस हिबा के बदले में दाता को कोई संपत्ति प्रदान करेगा तो ऐसे संव्यवहार को हिबा-ब-शर्तुल-एवज कहा जाता है I हिबा-ब-शर्तुल-एवज में प्रतिफल का भुगतान स्थगित कर दिया जाता है I क्यूंकि प्रतिफल तत्काल नहीं दिया जाता है इसलिए कब्ज़े का परिदान आवश्यक होता है I जब प्रतिफल का भुगतान कर दिया जाता है तो वह विक्रय की प्रकृति धारण कर लेता है I इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –

  • इसमें कब्ज़े का परिदान ज़रूरी है, जैसे कि हिबा में I
  • जब तक एवज का भुगतान न किया यह खंडनीय होता है I
  • शुरू में यह हिबा की तरह होता है और एवज का भुगतान हो जाने पर यह विक्रय की प्रकृति धारण कर लेता है I
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Filed Under: क़ानून / LAW, मुस्लिम विधि / Muslim Law Tagged With: क्या हिबा को रद्द किया जा सकता है, मुस्लिम विधि में हिबा का अर्थ, मुस्लिम विधि में हिबा क्या होता है

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